Is increasing fines the only solution for road safety?

क्या सिर्फ जुर्माना बढ़ाकर दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ?


इस समय पूरे देश में नये मोटर व्हीकल एक्ट की चर्चा जोरों पर है। इसमें जुर्माने की राशि को इतने अतार्किक रूप से बढ़ा दिया गया है कि देश के कुछ राज्यों ने तो इसे लागू करने से साफ़ इंकार कर दिया है तो कुछ में अभी तक विचार-विमर्श चल रहा है। गुजरात ने तो इसे लागू करने के बाद भी जुर्माने की रकम में नब्बे प्रतिशत तक कटौती कर दी है। अपने पिछले लेख में मैंने इस नए अधिनियम की उपयोगिता की समीक्षा की थी। अतार्किक रूप से बढ़े हुए जुर्माने की रकम के कारण जनता को परेशानियाँ हो रही हैं। पूरे देश में इस अधिनियम के विरुद्ध लोग आवाज उठा रहे हैं। पर हर बार नितिन गडकरी जी यही तर्क देते हैं कि उनका उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं को रोकने का है। क्या वास्तविकता में केवल जुर्माने की रकम को बेहिसाब बढ़ाने से सड़क दुर्घटनाएं रुक जाएंगी और यातायात सुधर जाएगा? जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयाँ करती है। 

सबसे पहले हम यदि सड़कों की बात करें तो उनकी खराब स्थिति के लिए किस पर जुर्माना लगाया जाये? गड्ढेदार ऊबड़-खाबड़ सड़कों के कारण कितनी दुर्घटनाएं हर साल होती हैं और कितने लोगों की जान जाती है, क्या इसके कोई आंकड़े सरकार जनता के सामने रखती है या इसके लिए कभी सम्बंधित विभाग या सड़क बनाने वाले ठेकेदार पर कोई कार्यवाही होती है? जवाब है कभी नहीं। दो वर्ष पहले मुंबई की एक महिला बाइकर की सड़क पर बने एक गड्ढे के कारण मौत का मामला मीडिया में खूब उछला था। हेल्मेट पहने होने के बाद भी उसकी मृत्यु हो गयी। जनता ने सड़कों की इस दुर्दशा के लिए महाराष्ट्र सरकार की जमकर आलोचना की पर सत्ता पाने के बाद हमारे देश के नेताओं को किसी चीज की परवाह नहीं होती। खासकर बारिश के मौसम सड़क पर बने गड्ढे और भी जानलेवा हो जाते हैं क्यों कि पानी भरा होने के कारण उनकी गहराई का पता नहीं चलता। अब जनता पर बेतहाशा जुर्माना लगाने से इस स्थिति में क्या सुधार होगा?

बात हाईवे और एक्सप्रेस वे की करें तो सड़कों के बीच डिवाइडर पर लगे पेड़-पौधे भी दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। इन डिवाइडरों पर चरने के लिए जानवर चढ़ जाते हैं जो कई बार एकदम से सड़क पर उतर जाते हैं, जिससे दुर्घटनाएं होती हैं। दोनों तरफ की सड़कों पर बने क्रॉसिंग पॉइंट भी कई बार दुर्घटना का कारण बनते हैं। क्रॉसिंग पॉइंट के पहले गति अवरोधकों के ना होने से कई बार सड़क पार कर रहा वाहन दूसरी तरफ से द्रुत गति से आते वाहन से टकरा जाता है। कुछ वर्ष पहले अभिनेत्री और भाजपा से सांसद हेमा मालिनी की कार से भी एक ऐसी ही दुर्घटना हुई थी, जिसमें एक बच्ची की मौत भी हो गयी थी। पर सत्ताधारी दल से और वीवीआईपी होने के कारण इस मामले में दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। कई बार रात के समय डिवाइडर पर लगे पेड़-पौधों के कारण सड़क पार कर रहे वाहन को दूसरी तरफ से आता हुआ वाहन और उसकी लाइट भी दिखाई नहीं पड़ती, जिसके कारण दुर्घटनाएं होती हैं। अब इसके लिए किस पर जुर्माना लगाया जाये? मैंने अपने पिछले लेख में ये सुझाव दिया था कि हाईवे और एक्सप्रेस वे पर दोनों तरफ की सड़कों के बीच क्रासिंग पॉइंट के पहले तीस फुट तक, डिवाइडर पर लगे पेड़-पौधे कटवा दिए जाएं।

अब बात यदि लोगों के वाहन चलाने के तरीके की करें इसमें बहुत सुधार की जरुरत है। वैसे तो हमारे देश में सड़क के बायीं तरफ चलने का नियम है लेकिन आज भी बहुत से लोग सड़क के दाएं या बीचोंबीच होकर गाड़ी चलाते हैं। गाँवों से आकर शहर में बसने वाले अधिकांश लोगों में ये प्रवृत्ति पायी जाती है लेकिन शहर के लोग भी इससे अछूते नहीं हैं। हमारे समाज में जैसे कुछ विचित्र सी कुप्रथाएं चल गयी हैं। आजकल बहुत से लोग जानबूझकर सड़क के बीचोंबीच या दायीं तरफ वाहन चलाते हैं। बार-बार हॉर्न देने पर भी बाजू नहीं हटते या बहुत देर से हटते हैं। कई बार वे पीछे से हॉर्न देने वाले को बड़े गुस्से में घूर के देखते हैं। ऐसा लगता है जैसे हर कोई अपने-आपको बहुत बड़ा दबंग सिद्ध करना चाहता है। कई लोग अपने से आगे चल रहे वाहन के मुड़ने के लिए दिए गए इंडिकेटर को जानबूझकर अनदेखा करके उस वाहन को उसी तरफ से ओवरटेक करते हैं, जिस तरफ वो मुड़ना चाहता है। ऐसे में कई बार झगड़े की स्थितियाँ बन जाती हैं। कितने ही लोग हमारे देश में, उसमें भी खासकर देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में रोड-रेज की घटनाओं में मारे गए हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही एमिटी यूनिवर्सिटी में दो छात्रों पर महज कार पार्क करने के विवाद पर हुए जानलेवा हमले की घटना सोशल मीडिया पर छाई हुई थी। आजकल तो स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को भी उनके माता-पिता वाहन दिला देते हैं। पर उन्हें सही तरीके से वाहन चलाना नहीं सिखाते।

संपन्न और राजनीतिक वर्ग से जुड़े लोग सड़क पर वाहन चलाने और पार्क करने में भी अपनी दबंगई का प्रदर्शन करना अपनी शान समझते हैं, चाहे हाईवे हो या शहर के अंदर के व्यस्त मार्ग। क्या इसके लिए सरकार ने कभी किसी पर जुर्माना लगाया है? क्या ऐसे मामलों में आज तक किसी को सजा हुई है? बिल्कुल नहीं, क्यों कि हमारे देश में कानून मुँह देखा व्यवहार करता है। रामचरितमानस की एक चौपाई "समरथ को नहीं दोष गुसाईं" का अधूरा और गलत अर्थ निकालकर हमारा देश उसे नियम मानता है और अमीर एवं राजनीतिक पहुँच रखने वालों, उच्च सरकारी अधिकारियों और उसमें भी खासकर पुलिस वालों और उनसे जुड़े लोगों पर तो किसी भी अपराध में कभी कोई कार्यवाही नहीं होती, महज कुछ अपवादों को छोड़ दें तो। सड़क अपर सो रहे लोगों पर गाड़ी चढ़ाने के मामले में तो एक अभिनेता पर व्यवस्था की मेहरबानी ने देश की क़ानून व्यवस्था का पूरे विश्व में मजाक दिया। क्या माननीय गडकरी जी जुर्माना लगाकर इसे रोक सकते हैं?

कभी टैक्स ना भरने वाले, बहुत सी सरकारी सुविधाओं का मुफ्त लाभ लेने वाले और जब चाहे तब मनमाने तरीके से अपना वेतन स्वयं बढ़ाने वाले हमारे देश के राजनीतिक वर्ग को इस बात का जरा सा भी अहसास नहीं है कि इस घोर महंगाई में कैसे देश की जनता अपना घर चलाती है और कैसे एक छोटा सा भी अनावश्यक खर्च पूरे घर का बजट बिगड़ देता है। यातायात सुधारने और सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के नाम पर नितिन गडकरी जी अहंकारपूर्वक अपने इस नए और पूरी तरह अतार्किक वाहन अधिनियम को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। अभी नोएडा में इसी बिल के कारण एक व्यक्ति की पुलिस के दुर्व्यवहार के कारण मृत्यु हो गयी है। पहले से ही जनता की रक्षा के लिए मिले अधिकारों का दुरुपयोग करके जनता पर ही अपनी दबंगई दिखाकर जनता को प्रताड़ित करने के लिए पूरे विश्व में बदनाम भारतीय पुलिस को इस नए अधिनियम के रूप में अवैध वसूली और वर्दी की आड़ में गुंडागर्दी करने का एक और नया साधन मिल गया है। अब उस युवक के वृद्ध माता-पिता की जिम्मेदारी कौन उठाएगा? साठ साल के बाद किस आधार पर ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण बंद कर दिया गया है? यदि अब उस युवक के माता-पिता को ही कहीं कार से जाना हो तो और वो भी किसी आपात स्थिति में तब वो क्या करेंगे? बात सिर्फ उस युवक के परिवार की ही नहीं पर ऐसे कई बुजुर्गों की है जिनके बच्चे अब उनके पास नहीं रहते या जो आज भी कार्य कर रहे हैं। क्या इसके लिए किसी पर जुर्माना लगाया जायेगा कि अपने आवश्यक कार्य के लिए दो या चार पहिया वाहन चलाना उनकी मजबूरी है और उनका लाइसेंस नवीनीकृत नहीं हो रहा? उस निर्दोष व्यक्ति की मौत का जिम्मेदार उन पुलिस वालों के साथ ही ये अतार्किक बिल और इसे बनाने वाले भी हैं।

ऐसा लगता है जैसे सत्तारूढ़ दाल अपने अनाप-शनाप निर्णयों को जनता के हित में लिए गए कड़े निर्णयों के रूप में प्रचारित करके जनता को भ्रमित करना चाहता है और उनके पास देश के विकास के लिए कोई भी योजना नहीं है। नोटबंदी के बाद ये नया तुगलकी फ़रमान इसका प्रमाण है। पर बदलते समय के साथ जनता की सोच भी विकसित होती है। यदि सत्ताधारी दल ने शीघ्र ही इस बिल को वापस नहीं लिया तो जनता के मन में पनप रहे असंतोष का परिणाम इनको भी वैसे ही मिलेगा जैसे इनसे पहले सत्ता में रहने वाले दलों को मिला था। एक लोकतांत्रिक शाषन व्यवस्था में हर कार्य जनता को भयभीत करके नहीं किया जा सकता। जनता को जागरुक करना और उसका विश्वास जीतना भी जरूरी है।     

Comments

Popular posts from this blog

Black Money : Will it ever be used for people's welfare?

Corona virus, India, world & people's mentality.