New Motor Vehicle Act : Monetary Torture on Public.

नया मोटर वाहन अधिनियम : जनता पर आर्थिक अत्याचार


भारत की भाजपानीत केंद्र सरकार ने देश में १ सितम्बर २०१९ से नया मोटर वाहन अधिनियम लागू किया है। इस बिल के पास होने से पहले ही इस पर पूरे देश में चर्चाओं का बाजार गर्म था। अब इसके लागू होने के बाद से इस बिल की प्रासंगिकता पर बहस बढ़ गयी है। पश्चिम बंगाल, पंजाब और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बिल के प्रावधान लागू करने से साफ इंकार कर दिया है। इस बिल में कुछ ऐसे विचित्र प्रावधान किये गए हैं कि जनता का एक बड़ा वर्ग इसका विरोध कर रहा है। उनमें सबसे मुख्य कारण है कि जुर्माने की राशि को बेहिसाब तरीके से बढ़ा दिया गया है। पहले जो जुर्माने की रकम न्यूनतम सौ रूपये से अधिकतम पाँच हजार रूपये तक थी अब उसे बढ़ाकर न्यूनतम पाँच सौ रूपये से अधिकतम एक लाख रूपये तक कर दिया गया है। बिना लायसेंस वाहन चलाने और रेड लाइट जम्प करने जैसे सामान्य अपराधों के लिए भी सजा का प्रावधान करके जुर्माने की रकम को बेहिसाब बढ़ा दिया गया है। पहले ही महँगाई की मार से परेशान जनता पर और अतिरिक्त आर्थिक बोझ लाद दिया गया है। 

देश की आबादी बढ़ने के साथ ही देश में निजी और सरकारी वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। पर ट्रैफिक के नियंत्रण के लिए पुराने मोटर वाहन अधिनियम के कानून ही पर्याप्त हैं। कानूनों का धरातल पर पालन ना होने के लिए हमारे देश की भ्रष्ट व्यवस्था जिम्मेदार है। अधिकतर समय ट्रैफिक पुलिस वाले ड्यूटी से नदारद रहते हैं। और जब ड्यूटी पर रहते हैं तो चैकिंग के नाम पर अवैध वसूली करते हैं। नियम तोड़ने के लिए जुर्माने का असली चालान काटने के बजाय वे पचास से लेकर पाँच सौ रूपये तक लेकर मामला वहीं निपटा देते है। इससे जनता में कानून का भय और समाप्त हो जाता है और भ्रष्टाचार बढ़ता है। जो पहुँच वाले होते हैं, उनके तो गंभीर अपराध करने पर भी कानून उनका कुछ नहीं कर पाता। उल्टा पूरी व्यवस्था उसे बचाने में लग जाती है। हिट एंड रन मामले में एक अभिनेता को आज तक सजा ना हो पाना इसका सबसे सटीक उदाहरण है। देश में क़ानून के पालन करने का ठेका तो मध्यवर्ग और निम्नवर्ग और उसमें भी विशेषतः हिन्दुओं ने ही ले रखा है। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग तो ऑन ड्यूटी पुलिस वालों को ही पीट देते हैं। दिल्ली और सूरत में पुलिस पर हमला, और राजस्थान के जयपुर में कुछ महीनों पहले हुई घटनाओं को लोग आज भी भूले नहीं होंगे। जयपुर में तो समुदाय विशेष की भीड़ ने थाने पर पथराव करने के साथ सार्वजानिक संपत्ति का बहुत नुकसान किया था। तिस पर भी स्थिति को सँभालने के लिए की गयी पुलिस फायरिंग में समुदाय  विशेष के एक युवक की मृत्यु होने पर तत्कालीन राजस्थान सरकार ने उल्टा उसके परिवार को आर्थिक सहायता दी थी। ये हमारे देश में तुष्टिकरण और सामंती मानसिकता के कारण कानून के पालन की स्थिति है। और परिवहन मंत्री माननीय श्री नितिन गडकरी जी का कहना है कि जुर्माने की रकम बढ़ाना एक मजबूरी थी ताकि जनता में कानून का भय हो। 

अब ये सोचने वाली बात है कि जिस देश में कानून के पालन में भी मुँह देखा व्यवहार होता है, वहाँ जुर्माने की रकम बेतुके रूप से बढ़ाने से जनता में क्या सन्देश जायेगा। वास्तविकता ये है कि नेता और पुलिस ही अपने निहित स्वार्थों के चलते ये नहीं चाहते की जनता कानून का पालन करे। नहीं तो भ्र्ष्टाचार से होने वाली काली कमाई बंद जो हो जाएगी। यदि पुराने कानून के हिसाब से ही किसी सामान्य व्यक्ति का महज पाँच सौ रूपये का चालान ही चार बार काट दिया जाये तो पाँचवी बार से वो गलती करना ही छोड़ देगा क्यों कि एक आम आदमी के लिए ये रकम भी बहुत होती है। पर इसके उलट हमारी पुलिस सौ-पचास में मामला सुलटाकर उसे बार-बार वही गलती करने के लिए प्रेरित करती है। अब दस गुना तक बढ़े इन जुर्मानों के हिसाब से तो पुलिस वाले भी पाँच सौ से कम में नहीं मानेंगे। यानि अब अवैध वसूली में पहले से कई गुना अधिक मुनाफा होगा। और रसूखदार लोगों का तो अभी भी कुछ नहीं होगा। आम आदमी की ही फजीहत होगी। 

यदि हम सामान्य घटनाओं की ही बात करें तो बिना लायसेंस के वाहन चलाना एक बहुत सामान्य बात है। पर इसके लिए भी पुलिस का सख्ती से कानून का पालन ना कराके सिर्फ वसूली करने वाला रवैया जिम्मेदार है। लायसेंस की अधिक फीस भी कुछ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए एक कारण है। हमारे देश में लायसेंस बनवाने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। बिचौलिये इसका फायदा उठाकर जनता से मनमानी रकम वसूलते हैं लायसेंस बनवाने के लिए। कुछ लोग लायसेंस चोरी हो जाने के डर से असली लायसेंस जेब में नहीं रखते क्यों कि डुप्लीकेट या दूसरा लायसेंस बनवाना भी उतना ही कठिन और महँगा पड़ता है। सरकार के द्वारा चलाई गयी डिजिटल लॉकर की व्यवस्था अभी देश के सारे हिस्सों में प्रभावी नहीं है और देश का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी स्मार्ट फोन उपयोग नहीं करता। अब इस स्थिति में इस पर दस हजार तक जुर्माना और सजा का प्रावधान जनता पर एक अत्याचार की तरह ही है। हेल्मेट के संबंध में भी कमोबेश यही स्थिति है। यदि सरकार किसी कंपनी से करार करके लोगों को उचित मूल्य में अच्छी गुणवत्ता के हेल्मेट उपलब्ध कराये तो शायद स्थिति सुधर भी सकती है। सिग्नलों पर स्थिति अतिरिक्त पुलिस वालों की तैनाती से सुधर सकती है। देश की विशाल जनसंख्या के हिसाब से देश में पुलिस बल अपर्याप्त है। बिना पंजीयन और परमिट के वाहन भी बिना हमारी भ्रष्ट व्यवस्था की मिलीभगत के नहीं चलते। परिवहन विभाग ने वाहनों के पंजीयन का शुल्क इतना अतार्किक रूप से बढ़ा रखा है कि विपन्न लोग कई साल पुराने वाहन कम मूल्य में खरीदकर उन्हें बिना पंजीयन के चलाते रहते हैं। देश में किसी वाहन के पंजीयन की आयु मात्र सोलह वर्ष होना भी कम है। ये कम से कम बीस वर्ष होनी चाहिए। 

नए अधिनियम में ड्राइविंग लायसेंस की वैधता घटाकर दस वर्ष कर दी गयी है जो कि लायसेंस बनवाने की फीस में वृद्धि के कारण सीधा जनता की जेब पर दोहरी मार है। इसी तरह साठ वर्ष की उम्र के बाद लायसेंस का नवीनीकरण ना करने का नियम भी पूरी तरह अतार्किक है। हमारे देश में कई बुजुर्ग लोग आज भी अकेले रहते हैं क्यों कि उनके बच्चे अपने व्यवसाय, नौकरी या अन्य कारणों के चलते उनके साथ नहीं रहते। कुछ विभागों में तो सेवानिवृत्ति की आयु ही बासठ और पैंसठ वर्ष है। अब ऐसी स्थिति में वे बुजुर्ग क्या करेंगे ? और किसी आपात स्थिति जैसे अचानक किसी के स्वास्थ्य बिगड़ने या किसी अनिवार्य कार्य से कहीं जाने पर या अपने दैनिक जीवन के किसी कार्य के लिए वाहन से जाने पर नए नियम के हिसाब से तो उन्हें बिना लायसेंस के मानकर उन पर जुर्माना लगाया जायेगा। वीआईपी सुविधाओं में रहने वाले हमारे नेता और मंत्रियों को क्या आम आदमी के दैनिक जीवन की ये समस्याएं पता भी हैं ? 

उपर्युक्त सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए मेरा सरकार से निवेदन है कि नए मोटर वाहन अधिनियम में अतार्किक रूप से बढ़ाई गयी जुर्माना राशि को वापस लिया जाये या कम किया जाये। साथ ही लायसेंस ले नवीनीकरण की आयु बढ़ाकर पचहत्तर या सत्तर वर्ष तक की जाये। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो आज भी इस उम्र में वाहन चलाने के लिए बहुत ही स्वस्थ्य हैं और अपनी परिस्थितियों के कारण इसके लिए मजबूर भी। पर वे आज के युवाओं से तो अच्छा ही ड्राइव करते हैं और उनसे कहीं अधिक कानून का पालन भी। साथ ही वाहन के बीमा विशेषकर चार पहिया वाहन के बीमा की रकम घटाई जाये। बीमा अब लाभ का उद्योग बन चुका है और कम्पनियाँ दुर्घटना की स्थिति में भी वाहन के सुधार का महज तीस या चालीस प्रतिशत ही भुगतान करती हैं और बीमा की किश्त बढ़ाकर वो भी वापस वसूल लेती हैं। वाहन के पंजीयन और लायसेंस बनवाने की प्रक्रिया भी और पारदर्शी बनाकर बिचौलियों से जनता को बचाकर इनकी लागत कम की जा सकती है। हाईवे और एक्सप्रेस वे पर डिवाईडर पर लगे पेड़ों को कटवा दिया जाए या इनकी संख्या कम की जाये। इन पर जानवर चरने के लिए चढ़ जाते हैं और एकदम से सड़क पर आकर दुर्घटना का कारण बनते हैं। खासकर डिवाईडर पर दोनों तरफ की सड़क के बीच क्रासिंग के लिए बने रास्ते रात के समय खतरनाक हो जाते हैं, क्यों कि पेड़ों के कारण दूसरी तरफ से आने वाला वाहन और उसकी रोशनी कई बार दिखायी नहीं पड़ते। कम से कम क्रॉसिंग के तीस फुट पहले तो ऐसे पेड़ काटे ही जा सकते हैं। बिना हेल्मेट और बिना लायसेंस जैसे अपराधों पर जेल की जगह समाजसेवा जैसी सजा भी दी जा सकती है। बात-बात पर जनता को भारी जुर्माने या जेल का भय दिखाने से सिर्फ भ्रष्टाचार ही बढ़ेगा। 

पुनः मेरा सरकार से निवेदन है कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में, जहाँ विभिन्न धर्म और आय वर्ग के लोग रहते हैं, बिना लोगों से संवाद किये और जमीनी हकीकत जाने, ऐसे अतार्किक कानून ना बनायें। एक कहावत है कि भले ही किसी की पीठ पर लात मार दो लेकिन किसी के पेट पर कभी लात नहीं मारनी चाहिए। वर्तमान समय की इस महँगाई में नए मोटर वाहन अधिनियम के ये बेतुके प्रावधान जनता पर आर्थिक अत्याचार ही हैं। और आम आदमी के घर का बजट बिगड़ने से चुनावों में राजनीतिक दलों की सीटों का गणित भी बिगड़ जाता है। वैसे भी ऐसे भारी जुर्माने के भय से जनता में कानून का भय तो नहीं बढ़ेगा पर व्यवस्था के प्रति घृणा जरूर बढ़ जाएगी। और जनता का प्रशाषन के साथ सामंजस्य ना होना लोकतंत्र की परिभाषा के हिसाब से उचित नहीं है। वैसे भी हर समय भय दिखाने से बात नहीं बनती। लोगों में जागरूकता फैलाना और उनका विश्वास जीतना भी जरुरी है।    

Comments

  1. Very rightly said,worst act & first time IAM against Modi government on this issue,even rs100 also was a big burden on citizens if by mistake violation happens for helmet & parking etc leave about drunk driving.

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