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Misguiding ads playing with people's emotions & entertainment industry

लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर भ्रमित करते विज्ञापन और मनोरंजन जगत  :- यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान समय में मनोरंजन जगत और मीडिया जनता और समाज को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। मनोरंजन जगत से जुड़े लोगों को बहुत से लोग आदर्श तक मानते हैं और उनकी बातों और कार्यों का अनुकरण करना पसंद करते हैं। मनोरंजन जगत की लोकप्रियता ने ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर विज्ञापन को एक वृहत और सफल व्यवसाय के रूप में स्थापित कर दिया है। लोकप्रिय कार्यक्रम और व्यक्ति को ही अधिक विज्ञापन मिलते हैं। कई बार तो किसी अभिनेता के लिये विज्ञापन से होने वाली आय उसके मूल कार्य से होने वाली आय से कहीं अधिक होती है। विज्ञापन करना अब मात्र व्यापार चलाने का एक अभिन्न अंग ही नहीं वरन रणनीति बन चुका है। टीवी, समाचार पत्र से लेकर सोशल मीडिया और इंटरनेट तक का उपयोग विज्ञापन के लिये हो रहा है। विज्ञापन का कार्य पिछले कुछ वर्षों में एक सफल उद्योग का रूप ले चुका है जिससे कि कई लोगों की आजीविका चलती है। लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले कलात्मक और मनोरंजक विज्ञापन बनाना भी एक कला हो गया है। परन...

Unemployment, Population and New Education Policy

बेरोजगारी, जनसंख्या और नयी शिक्षा नीति    इस वर्ष प्रंधानमत्री नरेंद्र मोदी जी ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए एक नयी शिक्षा नीति प्रस्तावित की। उसमें कुछ बिंदु तो निस्संदेह स्वागत योग्य हैं पर तब भी वर्तमान परिदृश्य के अनुसार बढ़ती बेरोजगारी और युवाओं की समस्याओं के समाधान के लिए उसमे अपेक्षित योजनाएं नहीं हैं। हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति में इतनी कमियाँ हैं कि छात्र आत्मनिर्भर भले ही ना हो पाएं परन्तु नौकरी ना मिलने पर निराशा और अवसाद से ग्रसित अवश्य हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में बहुत से युवाओं का जीवन और समाज से मोहभंग हो जाता है और वो गलत रास्ते पर चले जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में पढ़ाई और नौकरी के तनाव के कारण आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। ये दुःखद है कि देश को स्वतंत्रता मिलने के कई वर्षों बाद भी राजनीतिक दलों ने अपने निहित उद्देश्यों के चलते इतने महत्वपूर्ण विषय की अनदेखी की। ऐसी स्थिति में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की नयी शिक्षा नीति एक सराहनीय प्रयास है, पर अभी भी इसमें बहुत सुधारों की आवश्यकता है। इस लेख में नयी शिक्षा नीत...

Corona virus, India, world & people's mentality.

कोरोना वायरस, भारत, विश्व और लोगों की मानसिकता :- मुझे नहीं लगता कि हम सब लोगों में से किसी ने या अधिकतर ने नहीं सोचा होगा कि इस आधुनिक समय में भी जब विज्ञान इतना उन्नत है, महज एक छोटा सा वायरस जो कि साधारण दृष्टि से दिखाई भी नहीं देता, पूरे विश्व को इतने व्यापक स्तर पर प्रभावित करेगा। भारत समेत कई देशों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं। लोगों का घरों से बाहर निकलना और आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित है। पर क्या इन सब उपायों से इस महामारी पर विजय पायी जा सकती है? पूरी तरह तो नहीं पर काफी हद तक। संक्रमण फैलने से रोकने के लिए यह बहुत कारगर है। पर सिर्फ इतने से बात नहीं बनेगी। लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी नहीं तो हम कोरोना वायरस से जीत भी गये तो भविष्य में किसी दूसरी मुसीबत से हार जायेंगे।  वर्तमान समय में लोगों की सोच को प्रभावित करने में बाजारवाद की शक्तियों की महती भूमिका है। इन लोगों के पास विशेषज्ञों की पूरी टीम होती है जो केवल इसी उद्देश्य पर बहुत कड़ी मेहनत करती है कि किस प्रकार लोगों की सोच को इतना बदल दिया जाये कि लोग वही सोचें और करें जो ये चाहते हैं। ऐसा करने के लिए बहुत...

Hindutva, Nationalism, Development & BJP losing state after state.

हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, विकास और राज्य पर राज्य हारती भाजपा कुछ साल पहले जब कांग्रेसनीत यूपीए के शाषनकाल में अर्थव्यवस्था, महँगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य कई मुद्दों पर जनता में निराशा का दौर था तब नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से जनता के सामने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अच्छे दिन लाने के सपने दिखाकर सत्ता में आये। पर उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाने वाली जनता को उनके कार्यकाल के पहले ही वर्ष में उनसे निराशा होने लगी। फिर भी नरेंद्र मोदी जनता में लोकप्रिय बने रहे और उनके नेतृत्व में भाजपा ने कई राज्यों के चुनाव जीते। हालांकि कुछ राज्यों जैसे कि दिल्ली और बिहार में उनका जादू नहीं चला। सबका साथ और सबका विकास के नाम पर वोट माँगने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार ने विकास के नाम पर कुछ ख़ास किया नहीं। अर्थव्यवस्था, महँगाई और बेरोजगारी की स्थिति सुधारने के लिए सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये। इस पर भी अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए छद्म धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाने से हिंदुत्व के नाम पर भाजपा को वोट देने वाला अधिकतर हिन्दू वोटर नाराज हो ग...

How to curb economic slowdown ?

आर्थिक मंदी को कैसे नियंत्रित किया जाये ? इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में आयी हुई मंदी को लेकर देश में तरह-तरह की चर्चायें हो रही हैं। विपक्ष इसे सरकार की नाकामी के रूप में प्रचारित कर रहा है। बहुत ना-नुकुर करने के बाद सरकार ने स्वीकार किया है कि इस समय अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है और वित्तमंत्री जी ने इससे निपटने के लिए कुछ कदम उठाये हैं। पर अर्थशास्त्री उन्हें अपर्याप्त मानते हैं। आखिर क्या है ये मंदी और इससे देश की अर्थव्यवस्था कैसे प्रभावित होती है? सरल शब्दों में कहें तो जनता के पास धन की कमी ही आर्थिक मंदी है क्योंकि जनता के पास धन के कमी होने से उसकी क्रय शक्ति में कमी आती है जिससे वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार कम हो जाता है और अंततः इससे कर संग्रहण में भी कमी आती है जिससे सरकारी खजाने में धन की कमी हो जाती है। अब यहाँ पर प्रश्न ये उठता है कि व्यवस्था में धन की कमी कैसे हो जाती है? यहाँ पर अर्थशास्त्र के एक बहुत ही साधारण से सिद्धांत पर गौर करना होगा। और वो यह है कि जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रक्त का महत्व होता है, वैसा ही महत्व समाज में धन का होता है। जैसे ...

Is increasing fines the only solution for road safety?

क्या सिर्फ जुर्माना बढ़ाकर दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है ? इस समय पूरे देश में नये मोटर व्हीकल एक्ट की चर्चा जोरों पर है। इसमें जुर्माने की राशि को इतने अतार्किक रूप से बढ़ा दिया गया है कि देश के कुछ राज्यों ने तो इसे लागू करने से साफ़ इंकार कर दिया है तो कुछ में अभी तक विचार-विमर्श चल रहा है। गुजरात ने तो इसे लागू करने के बाद भी जुर्माने की रकम में नब्बे प्रतिशत तक कटौती कर दी है। अपने पिछले लेख में मैंने इस नए अधिनियम की उपयोगिता की समीक्षा की थी। अतार्किक रूप से बढ़े हुए जुर्माने की रकम के कारण जनता को परेशानियाँ हो रही हैं। पूरे देश में इस अधिनियम के विरुद्ध लोग आवाज उठा रहे हैं। पर हर बार नितिन गडकरी जी यही तर्क देते हैं कि उनका उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं को रोकने का है। क्या वास्तविकता में केवल जुर्माने की रकम को बेहिसाब बढ़ाने से सड़क दुर्घटनाएं रुक जाएंगी और यातायात सुधर जाएगा? जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयाँ करती है।  सबसे पहले हम यदि सड़कों की बात करें तो उनकी खराब स्थिति के लिए किस पर जुर्माना लगाया जाये? गड्ढेदार ऊबड़-खाबड़ सड़कों के कारण कितनी दुर्घटनाएं हर साल होती हैं...

New Motor Vehicle Act : Monetary Torture on Public.

नया मोटर वाहन अधिनियम : जनता पर आर्थिक अत्याचार भारत की भाजपानीत केंद्र सरकार ने देश में १ सितम्बर २०१९ से नया मोटर वाहन अधिनियम लागू किया है। इस बिल के पास होने से पहले ही इस पर पूरे देश में चर्चाओं का बाजार गर्म था। अब इसके लागू होने के बाद से इस बिल की प्रासंगिकता पर बहस बढ़ गयी है। पश्चिम बंगाल, पंजाब और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बिल के प्रावधान लागू करने से साफ इंकार कर दिया है। इस बिल में कुछ ऐसे विचित्र प्रावधान किये गए हैं कि जनता का एक बड़ा वर्ग इसका विरोध कर रहा है। उनमें सबसे मुख्य कारण है कि जुर्माने की राशि को बेहिसाब तरीके से बढ़ा दिया गया है। पहले जो जुर्माने की रकम न्यूनतम सौ रूपये से अधिकतम पाँच हजार रूपये तक थी अब उसे बढ़ाकर न्यूनतम पाँच सौ रूपये से अधिकतम एक लाख रूपये तक कर दिया गया है। बिना लायसेंस वाहन चलाने और रेड लाइट जम्प करने जैसे सामान्य अपराधों के लिए भी सजा का प्रावधान करके जुर्माने की रकम को बेहिसाब बढ़ा दिया गया है। पहले ही महँगाई की मार से परेशान जनता पर और अतिरिक्त आर्थिक बोझ लाद दिया गया है।  देश की आबादी बढ़ने के साथ ही देश में निजी...